मुसाफिर है हम भी,
मुसाफिर हो तुम भी,
शायद उस मोड़ में फिर से मिले ,
शायद ये नज़रे मिले,
शायद तू रुके,
और यह नज़रे झुके,
शायद उन सवालो के जवाब भी मिले ,
शायद उस मोड़ में फिर से मिले…. फिर से
शायद उन दरियाओं में, ,
फिर से वोह कश्तियाँ बहायंगे,
शायद उन अधूरे गीतों को ,
फिर से गुन्गुनायांगे ,
शायद उन अधूरे सपनो को,
हम अब साकार बनायंगे,
और हम ज़िन्दगी भर का साथ निभायंगे
बीते हुए उस बचपन में फिर से लौट जायंगे ,
तब्लो की थाप पर वो घुंगरू,
फिर से चंचनायंगे,
जाट तुम रूठो तोह,
प्यार से कुछ लिख कर पढ़ायेंगे ,
और हम ज़िन्दगी भर का साथ निभायंगे
उन गिले शिकवो को हम भूल जायंगे,
तुझको देख कर आंसू बहायंगे ,
उन बीते हुए पालो में फिर से लौट जायंगे,
और हम ज़िन्दगी भर का साथ निभायंगे
.....साथ निभायंगे........