कल-कल करते हुए समंदर में,
पानी को बहते हुए देख रहा था में ,
न जाने कितनो को किनारों पर खेलता हुआ देखा मैंने ,
बैठ क पत्थरों के बीचो बीच .
और मैंने उन पत्थरों में एक चींटी को देखा ,
मेरे पास से गुज़र रही थी वोह,,
गौर से देखा तोह जाना,
मुह में कुछ दबाये हुए चल रही थी वोह,
अपने परिवार क लिए खाना ले जा रही थी वोह,,
तभी पानी कि एक लहर आ पड़ी मुझपर ,
और शायद कुछ छींटे पड़े उस पर भी,
फिसल कर पत्थरों से रेट पर गिरी वोह ,
और वोह फिर उठी और चल पड़ी ,
उन लहरों से लड़ते हुए ,
मुह में खाना दबाये ,
लहरों को हरति हुई ....