रात को जब भी वो सोने जाता,
चुप हो जाता सहम जाता\,
अपनी माँ के पीछे चुप जाता,
एक तुक देखता रेहता वोह ,
उस कमरे की और जिसकी बत्तिया नहीं जल रही थी,
खड़ा रहता वो बस ना हिलता और ना डुलता,
शायद किसी के इंतज़ार में,
अपनी माँ पापा कि बातो को अब्सुना कर के,
वो बस खड़ा रहेता ,
मुझे डर लगता है माँ,
उस अँधेरे से और वह सोने से,
बोल वो धीरे से,
उस अँधेरे की गहराई से,
उनमे दिखती परछाई से ,
मुझे डर लगता है माँ,
यह बोल वो चल दिया,
अपनी माँ का पीछे,
एक कोने में सोने,
उन के बिस्तर में सोने ,
एक और रात उस डर से जीत गया वो,