वोह बैठे थोड़े शांत थे,
शायद समय की गहराई में खोये हुए थे,
कुछ सोच रहे थे न जाने क्या ,
या फिर कुछ ढूंढ़ रहे थे ,
चमकते हुए टिमटिमाते हुए ,
तारो के बीचो बिच,
पूर्णिमा की रात में ,
पर फिर वो मुस्कु रा दिए ,
शायद कुछ एहसास हुआ होगा,
उठ खड़ा हो कर वो,
आगे चल दिए , गुनगुनाते हुए लफ्जों को ,
चमकते हुए टिमटिमाते हुए ,
तारो के बीचो बिच,
शायद समय की गहराई में खोये हुए थे,
कुछ सोच रहे थे न जाने क्या ,
या फिर कुछ ढूंढ़ रहे थे ,
चमकते हुए टिमटिमाते हुए ,
तारो के बीचो बिच,
पूर्णिमा की रात में ,
पर फिर वो मुस्कु रा दिए ,
शायद कुछ एहसास हुआ होगा,
उठ खड़ा हो कर वो,
आगे चल दिए , गुनगुनाते हुए लफ्जों को ,
चमकते हुए टिमटिमाते हुए ,
तारो के बीचो बिच,