Sunday, September 30, 2012

सोच

वोह बैठे थोड़े शांत थे,
शायद समय की गहराई में खोये हुए थे,
कुछ सोच रहे थे न जाने क्या ,
या फिर कुछ ढूंढ़ रहे थे ,
चमकते हुए टिमटिमाते हुए ,
तारो के बीचो बिच,
पूर्णिमा की रात में ,
पर फिर वो मुस्कु रा दिए ,
शायद कुछ एहसास हुआ होगा,
उठ खड़ा हो कर वो,
आगे चल दिए , गुनगुनाते हुए लफ्जों को ,
चमकते हुए टिमटिमाते हुए ,
तारो के बीचो बिच,

Saturday, September 22, 2012



कुछ अजीब सी बात है यहाँ,
छाई हर जगह है खमोशिआ
धुआ धुआ दिखा है हर जगह
सन्नाटे में बस्ता है यह जहाँ 

बोलती नहीं ज़ुबान कुछ भी नहीं यहाँ,
फिर भी कुछ शोर है यहाँ,
धुआ धुआ दिखा है हर जगह
सन्नाटे में बस्ता है यह जहाँ 

किस को क्या कहू
हो कर भी साथ मेरे वो गुम  है
धुआ धुआ दिखा है हर जगह
सन्नाटे में बस्ता है यह जहाँ 

Friday, September 21, 2012

किस्मत

देखा था मैंने उसको मुझे घूरते हुए,
आँखों में उसकी मुझे एक भूक दिखी,
जब में खुद बैठा था एक गाड़ी में,
और मेरी हैसयत उससे बड़ी थी ,
पर उसकी आँखें वो बोल गई ,
जो बंद होठ भी न बोल पाए,
उसमे इतनी ताकत थी,
जो मेरे विचारो को हिल गए ,
और में यह सोचने बैठ गया,
की हैसयत सब कुछ नहीं,
भूक भी कुच्छ होती है,
जो उसने बोल मुझसे ,
शायद मुझमे बोलने की हिम्मत नहीं है,
गलती उसकी भी नहीं है की वो बहार धुप में खड़ा है ,
और में अंग्दर खिड़की बंद कर क बैठा हूँ,
यह सब नसीब का खेल है,
आज ख़राब है उसका,
और शायद कल मेरा हो,
छोटा बड़ा कोई नहीं है दोनों मेसे,
सब नसीब का खेल है,
अगर आज किस्मत ख़राब है उसकी,
शायद कल मेरी हो