Wednesday, November 28, 2012

चींटी

कल-कल करते हुए समंदर में,
पानी को बहते हुए देख रहा था में ,
न जाने कितनो को किनारों पर खेलता हुआ देखा मैंने ,
बैठ क पत्थरों के बीचो बीच . और मैंने उन पत्थरों में एक चींटी को देखा , मेरे पास से गुज़र रही थी वोह,, गौर से देखा तोह जाना, मुह में कुछ दबाये हुए चल रही थी वोह, अपने परिवार क लिए खाना ले जा रही थी वोह,, तभी पानी कि एक लहर आ पड़ी मुझपर , और शायद कुछ छींटे पड़े उस पर भी,
फिसल कर पत्थरों से रेट पर गिरी वोह , और वोह फिर उठी और चल पड़ी , उन लहरों से लड़ते हुए ,
मुह में खाना दबाये ,
लहरों को हरति हुई ....