Monday, April 9, 2012

कलयुग



देखो  यह क्या जिंदगी है,
दौड़ में भागती अंधी भीड़ है,
पराये तोह ठीक,
पर यहाँ अपनों की  भी खबर नहीं है,


यहाँ प्यास है हर कोई ,
यह प्यास भी कुछ अजीब है,
इर्षा द्वेष की भावना से ,
यहाँ हर कोई भरा है,


यहाँ आदमी बहुत रोता है,
जो पास है उससे उन्हें भी खो देता है,
लालचो में में डूबा हुआ,
खुद को कभी नहीं टोकता है,


कलयुग इससे सही कहा है,
कुत्ता तोह ठीक,
पर यहाँ आदमी -आदमी को काटने दौड़ता है,
यहाँ हर कोई भूका है,
इस आंधी भीड़ में दौड़ता है


समय गया जब यहाँ गाँधी का बोल बाला  था,
अब तोह यहाँ सचे का मुह कला है,
 रुपिया यहाँ सब को दीखता है 
हर कोई अपनी जेब भरने की सोचता है,

यह समय बहुत निराला है,
न जाने क्या-क्या दिखाना वाला है,
जो लिखू कम लगता है,
न जाने क्या - क्या होने वाला है 


7 comments:

  1. the truth presented in a beautiful way... :) very nice..

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  2. thank u very much rhythm :) :)..... its infact a "BITTER TRUTH"!!!!!

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  3. awesome....:) :) luv readin ur blog..:)

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  4. is topic mein toh aur bhi likh sakte h.....

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  5. thank u..... priyanshi joshi :) :)..... keep on reading..... more to come :) :)

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