Tuesday, April 10, 2012

मोड़


 मुसाफिर  है हम भी,
मुसाफिर हो तुम भी,
शायद उस मोड़ में फिर से मिले ,
शायद ये नज़रे मिले,
शायद तू रुके,
 और यह नज़रे झुके, 
शायद उन सवालो के जवाब भी मिले ,
शायद उस मोड़ में फिर से मिले…. फिर से 

शायद उन दरियाओं में, ,
फिर से वोह कश्तियाँ बहायंगे,
शायद उन अधूरे गीतों को ,
फिर से गुन्गुनायांगे ,
शायद उन अधूरे सपनो को,
हम अब साकार बनायंगे,
और हम ज़िन्दगी भर का साथ निभायंगे 


बीते हुए उस बचपन में फिर से लौट जायंगे ,
तब्लो की थाप पर वो घुंगरू,
फिर से चंचनायंगे,
जाट तुम रूठो तोह,
प्यार से कुछ लिख कर पढ़ायेंगे ,
और हम ज़िन्दगी भर का साथ निभायंगे 


उन गिले शिकवो को हम भूल जायंगे,
तुझको देख कर आंसू बहायंगे ,
उन बीते हुए पालो में फिर से लौट जायंगे,
और हम ज़िन्दगी भर का साथ निभायंगे 
.....साथ निभायंगे........


Monday, April 9, 2012

कलयुग



देखो  यह क्या जिंदगी है,
दौड़ में भागती अंधी भीड़ है,
पराये तोह ठीक,
पर यहाँ अपनों की  भी खबर नहीं है,


यहाँ प्यास है हर कोई ,
यह प्यास भी कुछ अजीब है,
इर्षा द्वेष की भावना से ,
यहाँ हर कोई भरा है,


यहाँ आदमी बहुत रोता है,
जो पास है उससे उन्हें भी खो देता है,
लालचो में में डूबा हुआ,
खुद को कभी नहीं टोकता है,


कलयुग इससे सही कहा है,
कुत्ता तोह ठीक,
पर यहाँ आदमी -आदमी को काटने दौड़ता है,
यहाँ हर कोई भूका है,
इस आंधी भीड़ में दौड़ता है


समय गया जब यहाँ गाँधी का बोल बाला  था,
अब तोह यहाँ सचे का मुह कला है,
 रुपिया यहाँ सब को दीखता है 
हर कोई अपनी जेब भरने की सोचता है,

यह समय बहुत निराला है,
न जाने क्या-क्या दिखाना वाला है,
जो लिखू कम लगता है,
न जाने क्या - क्या होने वाला है