Tuesday, April 10, 2012

मोड़


 मुसाफिर  है हम भी,
मुसाफिर हो तुम भी,
शायद उस मोड़ में फिर से मिले ,
शायद ये नज़रे मिले,
शायद तू रुके,
 और यह नज़रे झुके, 
शायद उन सवालो के जवाब भी मिले ,
शायद उस मोड़ में फिर से मिले…. फिर से 

शायद उन दरियाओं में, ,
फिर से वोह कश्तियाँ बहायंगे,
शायद उन अधूरे गीतों को ,
फिर से गुन्गुनायांगे ,
शायद उन अधूरे सपनो को,
हम अब साकार बनायंगे,
और हम ज़िन्दगी भर का साथ निभायंगे 


बीते हुए उस बचपन में फिर से लौट जायंगे ,
तब्लो की थाप पर वो घुंगरू,
फिर से चंचनायंगे,
जाट तुम रूठो तोह,
प्यार से कुछ लिख कर पढ़ायेंगे ,
और हम ज़िन्दगी भर का साथ निभायंगे 


उन गिले शिकवो को हम भूल जायंगे,
तुझको देख कर आंसू बहायंगे ,
उन बीते हुए पालो में फिर से लौट जायंगे,
और हम ज़िन्दगी भर का साथ निभायंगे 
.....साथ निभायंगे........


5 comments:

  1. another good post.. :)
    m falling short of comments now! all your posts are so good.. :)

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  2. thanx alot rhythm.... i try to write my best every time i pick up my pen to write.... keep reading and keep motivating :) :)

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