Wednesday, January 30, 2013

सिग्नल



उस  तड़पती  धूप  मे  निकला  में ,
अपनी  दो  पहिया  गाड़ी  में ,
अपने दफ्तर की ओर ,
रोज़ का वो आधे घंटे का सफ़र ,
मनो कितने घंटे में खिच गया हो ,
पसीने से लतपत में चलाता रहा ,
गाडी  के  हॉर्न को  बजाताहुआ  उसको  निकालता  रहा ,
और  आया  मेरे ऑफिस  से  पहले एक  सिग्नल ,
वहा एक लड़की नंगे पैरो में करतब कर रही थी ,
और उसकी  मा  पास के  एक  पेड़  की  छाओं  तले  बैठी  ,
दुग्दुगी  बजा  रही  थी ,
और  वो  नन्ही  कलि  ताल से ताल  मिला रहि  थी ,
उस 60 सेकंड  को  बिताने  के लिए  लोग  करतब  देख  रहे  थे ,
में  भी  उस  कलि को  देख  रहा था ,
वो  रुकी  और लोगो  की ओर चली ,
लोगो ने उसको अनदेखा किया,
पर वो आगे बढ़ी और मेरे पास आ कर रुकी ,
मैंने पूछा  खाना खाया  ,
और वो बोली नहीं ,
पास ही में एक ठेला खड़ा था ,
मैंने गाडी को किनारे लगाया ,
सौ रूपए का एक नोट निकल ,
उसको और उस के भाई बहनों को खिलाया,,
लोग मुझे देख अचंभित हो गए,
हसने लगे पर में भी चलता गया ठेले की ओर ,
फिर में बिह हसने लगा ,
पर उन के हसने और मेरे हसने का तर्क कुछ और था,
उन्होंने जिनको ठुकराया मैंने उनको अपना बनाया,
उन भूके लोगो को मैंने पेट भर क खाना खिलाया ,
उस सिग्नल से जब भी में गुज़रता हूँ ,
उनको देख मुस्कुराता हूँ ,
उस कलि को खिलता  देख खुशहोता  ,
और अपने दफ्तर की और निकल जाता हूँ .


2 comments:

  1. its awesome!! you seriously the best in writing Hindi compositions.. :)

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  2. thank you veryyy muchhhhhh :) :) :) :) :) :) :) :)

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